हमारी खिड़की

याद है तुम्हें
बारिशों का वह दिन,
रुक-रुक कर,
हर कुछ देर में
बूँदें गिर पड़तीं ,
याद है खिड़की के बाहर
पत्ते पर ठहरी
वह इकलौती बूँद -
और उसमें प्रतिबिंबित होती
हमारी खिड़की.
हमारी खिड़की-
एक दूसरी दीवार में बसी-
बड़ी, नक्काशीदार
फ्रेंच विंडो.

याद है उस दिन
दो बजे लैब एग्ज़ाम  था,
बारिश रुकते ही
निकल चले थे हम,
धुंध में खोई-सी
रेल की पटरियों पर चलते
उस ही खिड़की की बातें करतीं 
आगे निकल गई थी तुम.
याद है वह ट्रेन
जो हमारे बीच से निकल गई थी,
छींटे मारती हमपर.

आज भी वह ट्रेन दिखी,
आज भी छींटे उड़ा रही थी,
आज भी बूँदें रुकी थी,
पर उनमें कोई खिड़की न थी,
या शायद
धुंध में खो गई थी
वे आँखें.

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