मेंड़
कुछ शाम जब,
रोज़ की ही तरह,
टहलने निकलता हूँ
"सहायक" की निगरानी में,
और पहुँच जाता हूँ
ऊँची मेड़ तक
उस पार दिख जाती है
कोई इक्का दुक्का गाडी
आस्फाल्ट की सपाट सड़क पर दौड़ती,
कभी कभी कुछ साइकिल सवार भी -
सलेटी हवा को काटते.
सलेटी हवा -
हलकी नमकीन गंध लिए,
कभी सरसराती, तो कभी सीटी बजाती,
किसी बीच के पास होने का अहसास दिलाती.
समुद्र - रहस्यमय ,
हमेशा ही आकर्षित करता मुझे -
कभी दिल करता
मेड को फांद कर
फिर पहुँच जाऊं वहीँ,
फिर से मिलूँ तुम सब से.
पर फिर सुन जाती है
सरसराहट -
तुम्हारी दी कई सौ रसीदों की.
रोज़ की ही तरह,
टहलने निकलता हूँ
"सहायक" की निगरानी में,
और पहुँच जाता हूँ
ऊँची मेड़ तक
उस पार दिख जाती है
कोई इक्का दुक्का गाडी
आस्फाल्ट की सपाट सड़क पर दौड़ती,
कभी कभी कुछ साइकिल सवार भी -
सलेटी हवा को काटते.
सलेटी हवा -
हलकी नमकीन गंध लिए,
कभी सरसराती, तो कभी सीटी बजाती,
किसी बीच के पास होने का अहसास दिलाती.
समुद्र - रहस्यमय ,
हमेशा ही आकर्षित करता मुझे -
कभी दिल करता
मेड को फांद कर
फिर पहुँच जाऊं वहीँ,
फिर से मिलूँ तुम सब से.
पर फिर सुन जाती है
सरसराहट -
तुम्हारी दी कई सौ रसीदों की.
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