हमारी खिड़की -2
याद है
बारिशों का वह दिन सुमी -
पत्ते पर रुकी वह अकेली बूँद.
याद है सुमी
उसमें प्रतिबिंबित होती
वह खिड़की -
बड़ी, नक्काशीदार -
किसी और दीवार में बसी.
याद है सुमी
शंख से बना वह कंगन,
और वह लाख वाला?
याद हैं वे रंग
बोतलों से छलक कर
कैनवस पर उतरते
तुम्हारी उँगलियों से होते,
याद है उनका गाढ़ापन -
जैसे कोई प्रतिमा हो
उस सतह में कैद -
अकेली -
धुंध में घिरी.
बारिशों का वह दिन सुमी -
पत्ते पर रुकी वह अकेली बूँद.
याद है सुमी
उसमें प्रतिबिंबित होती
वह खिड़की -
बड़ी, नक्काशीदार -
किसी और दीवार में बसी.
याद है सुमी
शंख से बना वह कंगन,
और वह लाख वाला?
याद हैं वे रंग
बोतलों से छलक कर
कैनवस पर उतरते
तुम्हारी उँगलियों से होते,
याद है उनका गाढ़ापन -
जैसे कोई प्रतिमा हो
उस सतह में कैद -
अकेली -
धुंध में घिरी.
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