भोग

शहद
जहाँ भी छू जाए
छोड़ जाता है अपनी मिठास,
और फिर
आसानी से छूटती भी नहीं वह
चिपचिपी-सी मिठास,
कर लेती है आकर्षित
जाने किस किस को
अपनी लुभावनी गंध से.
कुछ चींटियों को भी
कर लिया आकर्षित उसने -
आ तो गई थीं वे 
लाइन लगा कर,
पर ज़रा अब देखो उन्हें
नीचे बिखरे शहद में  चलते -
गोधूली बेला में
अटक गया हो जैसे समय.

वहीँ बैठ गया मैं भी घुटनों के बल,
हाथ में स्ट्रॉ लिए,
अटका रहा उनके साथ कुछ पल.

फिर स्ट्रॉ होठों पर लगा
गहरी सांस खींची
चटक कर एक चींटी 
उड़ चली मेरी ओर -
मीठे शहद में डूबी.

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बडा आकर्शक स्ट्रा है जी :)

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