वॉलपेपर

जोकर जैसी मुस्कान
गाल पर लिख दी तुम्हारे,
बुरा हुआ,
मैं तुम्हारे माथे पर
पारो जैसे निशान की
उम्मीद किए बैठा था -
उसमें कवित्व होता -
जीवन कला का प्रतिबिम्ब लगता.

पर ऐसा कहाँ होता है भला!
फिर चाँद भी तो नहीं है,
और न ही माथे पर रखी
स्नेह भरी हथेली की
कोई कमी ही है अभी.

और फिर,
हाँ,
ज़िन्दगी अभी लम्बी बाकी है,
शायद कुछ बची भी हो,
शायद एक दिन
सुन्दर वॉलपेपर बन जाओ तुम.

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