गूँज - ३

सूरज की पूँछ पकड़
यहाँ ले ही आई तुम
घसीटते हुए उसे.

पिघलती बर्फ देख
मुस्कुराहट खेल गई तुम्हारे होंठों पर,
पर
नसों में अब भी
अटका हुआ है
बर्फवाला मौसम,
और दौड़ रहा है
दिल की ओर.

टिप्पणियाँ

nilesh mathur ने कहा…
बहुत सुन्दर!
सूरज और बर्फ़ का अनोखा संगम... नसों में जमना ही था :)

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शायद यह सब

जुराब

तुम बिन, जाऊं कहाँ...