अब बस

माँ,
यह भी अच्छी नहीं लगी ना तुझे?
यह भी ठीक नहीं है ना?
जब तक बाहर थी,
ठीक थी,
पर भीतर आ गई तो
गड़बड़ हो गई.

कोई नहीं माँ,
जल्द ही फिर बाहर हो जाएगी.
पर जब कोई और अन्दर आएगी
तब यह तो बेहतर नहीं लगने लगेगी ना माँ?
कोई पहली बार थोड़े ही हो रहा है
इस बार तो ध्यान से देख ले माँ.

ना माँ,
अब कोई और नहीं आएगा
इस कमरे में,
अब जो भी दीखता है
सब को नापता हूँ
पिछले रिश्ते से,
और अब हर कोई
छोटा पड़ जाता है माँ.

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`पर जब कोई और अन्दर आएगी
तब यह तो बहतर नहीं लगने लगेगी ना माँ?'

घर घर की कहानी :)

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