मेरे दोस्त आलू
दीवारों पर जमी काई
रोज़ खुरच खुरच कर
नमक के साथ उबाल कर
पेट भर रहा हूँ,
अब आलुओं से दोस्ती जो हो गई है.
तुम सब ही की तरह ये भी
एक जैसे हैं सारे के सारे मगर
अलग होने का ताना कभी कसते नहीं.
देखते रहते सदा
अनगिनत छोटी आँखों से मुझे
पागल समझ फिर भी कभी मुझपर हँसते नहीं.
रोज़ खुरच खुरच कर
नमक के साथ उबाल कर
पेट भर रहा हूँ,
अब आलुओं से दोस्ती जो हो गई है.
तुम सब ही की तरह ये भी
एक जैसे हैं सारे के सारे मगर
अलग होने का ताना कभी कसते नहीं.
देखते रहते सदा
अनगिनत छोटी आँखों से मुझे
पागल समझ फिर भी कभी मुझपर हँसते नहीं.
टिप्पणियाँ