मोड़
कई मोड़ हैं
बिखरे हुए
इस शहर में.
कभी इन्हीं मोड़ों पर
मिल जाते थे
तुम्हारे दोस्त और तुम.
चाय की प्याली पर
बातें भी खूब होती थीं,
कुछ-कुछ समझने लगा था तुम्हें
चाहे जानता नहीं था -
जानना चाहता भी नहीं था.
आज भी वे मोड़
वहीँ पड़े हैं.
बिखरे हुए
इस शहर में.
कभी इन्हीं मोड़ों पर
मिल जाते थे
तुम्हारे दोस्त और तुम.
चाय की प्याली पर
बातें भी खूब होती थीं,
कुछ-कुछ समझने लगा था तुम्हें
चाहे जानता नहीं था -
जानना चाहता भी नहीं था.
आज भी वे मोड़
वहीँ पड़े हैं.
टिप्पणियाँ
वहीँ पड़े हैं’
और तुम........ मुड़ चली हो:(