छोटा-सा आसमान


कल
प्रकाश में नहाए थे तुम,
प्रकाश पर्व जो था.

एक हारे हुए राष्ट्रपति के लिए
कुछ लोगों ने खो दिया अधिकार
चुन पाने का
शोर करने और न करने के बीच.
पर तुम्हें इससे क्या,
तुम्हें तो मौका मिल गया
कुछ और धुआं भरने का
मेरे फेफड़ों में.

आज सुबह मिलेगी
पार्क में टहलने वालों को
कुछ-एक पक्षियों के मृत शरीर.
पर तुम्हें इससे क्या,
तुम्हें उन बच्चों से भी क्या
जिनके हाथों के बने पटाखे मिले हैं तुम्हें.
इतना तो कमा ही लेते होंगे
कि बचा सकें अपने पर.

*चित्र: राजा रवि वर्मा

टिप्पणियाँ

‘इतना तो कमा ही लेते होंगे
कि बचा सकें अपने पर’

पर कहां, वर्षा जो थी :)

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