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जून, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

परिचय

यही शहर था पर अनजाना-सा, अजनबियों से भरा. हाँ, यही शहर था पर गलियाँ कोई और थीं रास्ते चले जा रहे थे किन्हीं अँधेरे कोनों में. दूर खिसकती गईं पंक्तियाँ, धँस गए कहीं शब्द, बस रह गईं - दीवारों पर सिर पटकती, किवाड़ खटखटाती, खिड़कियाँ टटोलती, गूँजती आवाजें.

मनोरंजन

सुबह-सुबह आँख भी अभी खुली नहीं थी पूरी पर खड़ा था वह पानी, गिलास और कुप्पी लिए, आँख भी अभी खुली नहीं थी पूरी रेल के किनारे. आस पास उसके उछल रहे थे कुछ बंदर. अचानक बजाने लगा वह कुप्पी से गिलास, पर ध्यान किसी का भी उस बच्चे पर गया नहीं, हाँ, कुछ लोग खिलाने लगे रोटी बंदरों को.

विरेचन

सो रहा था वह प्लेटफार्म पर, अचानक हिचकी उठी आँख खोल सामने खिसका उल्टी की अपने ही पैरों पर, दाढ़ी से भी टपक रही थी कै. पैरों के निशान छोड़ता फिर वहीँ पीछे खिसक सो गया.

सुश्री. आत्मसंहार

प्रेम प्रतिरोध एक नाकाम प्रतिरोध. आज भी तैर रहे हैं तुम्हारी आँखों में भूत जो भगा नहीं सका मैं, एक बोतल का भूत जो टूटी नहीं, एक रिश्ते का भूत जो जुड़ा नहीं. एक लाश और एक आशंकित चेहरा. मेरे हाथों में चरमराकर बिखर गया गुलाब की पंखुड़ी-सा.

सपना

सपनों की भीड़ में अपना समझ बैठा था किसी गलत सपने को. अगर मेरा होता, मिल ही गया होता अब तक एक छोर तो कम-से-कम. खोज जारी है घूमती दुनिया में मेरे असली सपने की. जाने किस कोने में छिपा बैठा है वह.