पस-ए-आइना कोई और है

रेत से
ढँक गया है सब,
सारा फर्नीचर, सब परदे, सारा आँगन,
जैसे उतर आया हो
सहरा मेरे घर में.

और जहाँ नहीं थे पहले
आज खड़े हो गए हैं
आईने.

मिल गया आखिर
तुम्हारा संदेश.
घुमा-घुमाकर,
उलट-पलटकर,
हर तरफ से देख लिया
पर पढ़ नहीं पा रहा हूँ अब भी.
और घूर रहे हैं
ये आईने मुझे,
छोड़ नहीं रहे,
एक पल को भी,
मुझे अकेला.

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