तुम और तुम्हारी याद

तेज़
बहुत तेज़
चला रहा था
बाईक.

बंधा था उसपर
एक बड़ा
भरी-भरकम
लट्ठा,
लट्ठा जिसके एक छोर पर
एक बड़ी-सी आँख खुली थी.

इस वजन के बाद भी
चला रहा था इतनी तेज़
डर रहा था मैं
टकरा जायेगा कहीं.

तभी
एक और बाईक पर
छोटी-सी दिखती
शायद तुम,
सामने आगई,
धीमी होगई रफ्तार
कुछ तसल्ली हुई मुझे.

कुछ और देर में
सामने आगई एक कार
दो बच्चे थे उसमें सवार
और धीमी होगई रफ़्तार.

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तब से
लड़ते रहते हैं हमेशा
तुम
और तुम्हारी यादें,
यादें-
जो उड़ना चाहती थी,
तेज़
बहुत तेज़.

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