विशुद्ध पीड़ा

मेज़ के उस पार
नकसीर फूट पड़ी,
अचानक मुस्कुराकर तुमने कहा-
गुनगुना है खून.

जानता हूँ
गलत लगा तुम्हें
उदास दिखना
नकसीर के साथ.
पर
पारदर्शी हो चला था
तुम्हारा चेहरा.

उस पल
सारे रिसीवर जाम होगए
विशुद्ध पीड़ा से.

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