शॉट

वह
दबा था मिट्टी में
कमर तक.
अकड़े हुए हाथ से
आँखें ढकी थी उसकी.

वाह!
कितना शानदार शॉट था!
पर माँ को मैं
अजीब लगा,
बुरा भी,
उसे देखता हुआ.

डिब्बे में बैठे
स्केल पर आराम फरमाते
मेरे छोटे-से ब्लू के अलावा
कोई नहीं मुस्कुराया
उस लाश पर
मेरे साथ.

टिप्पणियाँ

Moon ने कहा…
bloo is duniya ka nahi hain...n dats y it doesnt understand the meaning n importance of life....n the writer doesn't empathize with human existence either...

smiling at a pathetic scene, uff!
कोई नहीं मुस्कुराया
उस लाश पर
मेरे साथ

शायद वो नहीं जानते थे कि ये दुश्मन की लाश है:)

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