खामोशियाँ
कभी हमें घेरे खड़ी थीं
आज हमारे बीच भर गई हैं
खामोशियाँ.
शब्द
पहले शूल बने
फिर शोर बने
फिर हो गए अर्थ-हीन.
कुछ पूछते नहीं
कुछ कहते नहीं
पर
कुछ सुनना भी चाहते नहीं
घूरती रहती हैं हमें
खामोशियाँ,
कहती हैं
इसी जुबाँ से
हमें चौंकाना चाहते थे?
चाहते थे, हम पूछें
कौन-सी जुबाँ है?
आज हमारे बीच भर गई हैं
खामोशियाँ.
शब्द
पहले शूल बने
फिर शोर बने
फिर हो गए अर्थ-हीन.
कुछ पूछते नहीं
कुछ कहते नहीं
पर
कुछ सुनना भी चाहते नहीं
घूरती रहती हैं हमें
खामोशियाँ,
कहती हैं
इसी जुबाँ से
हमें चौंकाना चाहते थे?
चाहते थे, हम पूछें
कौन-सी जुबाँ है?
टिप्पणियाँ
पहले शूल बने
फिर शोर बने
फिर हो गए अर्थ-हीन
सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई॥