बेनकाब



खिड़की,
अंदर आती धूप,
और बेतहाशा गर्मी.

धीरे धीरे
खिड़की पर उग आए पौधे,
छन-छन के आती धूप,
रोशनी, सिर्फ रोशनी,
गर्मी बिलकुल नहीं.

धीरे-धीरे
ढक गई पूरी खिड़की,
खिड़की से ही लौटने लगी
रोशनी भी.

काट डाले वे पौधे.

खिड़की,
अंदर आती धूप,
और बेतहाशा गर्मी.

टिप्पणियाँ

ye 5 kavitaaen anubhooti ko bhej deejiye.
kafee antaraal ho gaya kuchh chhape.

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