अर्थहीन रोटी (my first delete-cut-up)
उपजे बीज पकवान, संसद सेठों के लिए
भूख में तपे स्वयं देश आधा
भक्ति की शक्ति अपने रक्त से हैं
दीप काट आँतों के टुकड़े घूमते
सब कुछ लग कील डालो
शक्ति मिलकर सब उठालो
भटकते नारों को हवा दो, गरुड़ बनकर
सींग थामो और थामो रोटियाँ.
सो गए तो - न खलिहान, न रोटी
बस हाथों पर उगी रोटियाँ
भूख में तपे स्वयं देश आधा
भक्ति की शक्ति अपने रक्त से हैं
दीप काट आँतों के टुकड़े घूमते
सब कुछ लग कील डालो
शक्ति मिलकर सब उठालो
भटकते नारों को हवा दो, गरुड़ बनकर
सींग थामो और थामो रोटियाँ.
सो गए तो - न खलिहान, न रोटी
बस हाथों पर उगी रोटियाँ
टिप्पणियाँ
मेरी तेवरी निर्मम हत्या के बाद भी अर्थ दे रही है !