पक्षाघात

शाम को
जाने कहाँ से आ गिरा
वह सुनहरा पंछी,
यहाँ, रेत में,
पंख कट गए थे उसके
जाने कैसे.
फड़फडा़ रहा था उसका शरीर.

घेरे खड़ी हो गई उसे, एक भीड़.
कुछ उठा के चल दिए
उससे झड़ते सोने को,
तो कुछ उसके ज़ख्मों से
रिसती लाल मणियों को.

प्रतीक्षा थी, समझदारों को
उसकी मौत की,
जब हीरा बने दिल
और पुखराज पुतलियों को
निकाल सकें.

उस रात,
कई टिमटिमाती आँखों वाला
बड़ा विचित्र नक्षत्र
आकाश में दिखाई दिया.
जाने क्यों हर कुछ मिनटों में
उसका एक तारा टूट, गिर जाता था कहीं.

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