षड्यंत्र

एक थी परी
उड़ रही थी बादलों के बीच

नीचे देखने लगी
कुछ बिन्दुओं को
ज़मीन पर कहीं

वे बिंदु
खीचने लगे उसे
अपनी ओर.

कोशिश की उसने
ऊँचा उठने की
पर
जब तक जाना
कि खिंच रही है
देर हो चुकी थी.

उतर आना पड़ा उसे
उन बिन्दुओं के बीच.

देखा उसने हर ओर,
हर बिंदु में
अपना ही प्रतिबिम्ब दिखा.

जो कभी पसंद न था
खुद में,
दबा हुआ था कहीं
जाने क्यों
दिखने लगा सतह पर.

वे झूठ जिन पर विश्वास था,
वे शान्तिपाठ जिन पर आस्था थी,
वे आवाजें जो सिर में कहीं थीं,
सब मिलकर
यह षड्यंत्र रच रहे हैं
उसके खिलाफ.

वह धर्म जो जीना चाह रही थी,
वह धर्म जो नियंत्रित कर रहा था,
वह धर्म जो कान फाड़ रहा था,
वही षड्यंत्र रच रहा है
परी के खिलाफ.

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