ॐ पूर्णाय नमः

तुम
सदा खोजती रहती हो,
पूर्णता.

हर रिश्ते में,
घर में,
बाहर-
धूप में.

पर,
पूर्णता
एक क्षण से ज्यादा
कहाँ रहती है?

और तुम,
फिर दौड़ पड़ती हो,
उस ही की तलाश में.

और मैं,
अपूर्ण,
तुम्हारे इंतज़ार में.

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मुझे क्या महसूस होता है
यह तुम मुझे बताओगी!!

जाओ,
जारी रखो अपनी तलाश.
मुझे रहने दो
अपने साथ.

मुझे नहीं रहना
सब जगह,
मुझे नहीं जानना
सब कुछ,
मुझे नहीं करना
कुछ ख़ास.

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मेरा यह क्षण,
मेरा ख़ुद का यह क्षण,
मेरे फ्रेम का
बस मेरा है.

तुम
रखो अपने पास
अपने ईश्वर.
दिलाती रहो ख़ुद को विश्वास
कोई और होने का.

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