खिड़की से चाँद
बर्थ पर लेटे खिड़की से झाँका तो काले पेड़ों की पैनी उंगलियाँ चाँद को चीर रही थीं. मैंने देखा खून की कुछ बूँदें उभर आईं थीं उसके गालों पर और माथे पर एक पुराना दाग फिर से खिल उठा था. सोचा, उठूं उन नाखूनों को उखाड़ दूँ, पर रेल के पहियों की धुन ने मुझे पाश में कस सपनों की चार दीवारी में कैद रख छोड़ा.